राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग | rashtriya pichda varg aayog

राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग

संविधान में पिछड़ा वर्ग की कोई परिभाषा नहीं है परंतु समाज में उन वर्गों को पिछड़ा कहा जाता है जो सामाजिक व शैक्षणिक स्तर पर कमजोर हैं। ये ऐसे वर्ग हैं जो अनुसूचित जाति व जनजाति में सम्मिलित नहीं किये गये हैं तथा संविधान में इन वर्गों के लिए विशेष प्रावधान किया गया है। राज्य सामाजिक और शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े हुए नागरिकों के किन्हीं वर्गों की उन्नति के लिए या अनुसूचित जाति अथवा जनजाति के लिए विशेष उपबंध कर सकता है, अनुच्छेद-15(4)। राज्य पिछड़े हुए नागरिकों के किसी वर्ग जिनका प्रतिनिधित्व राज्य के अधीन सेवाओं में पर्याप्त नहीं है को नियुक्तियों या पदों के आरक्षण के लिए प्रयास कर सकता है, अनुच्छेद-16(4)। राज्य अन्य कमजोर वर्गों के शिक्षा और आर्थिक हितों की अभिवृद्धि के लिए भी प्रयास कर सकता है, (अनुच्छेद-46)। अनुच्छेद-340 के अंतर्गत् राष्ट्रपति सामाजिक और शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों की स्थिति की जांच और उनकी कठिनाइयों को दूर करने की सिफारिश के लिए एक आयोग नियुक्त करेगा।
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राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (एनसीबीसी) एक संवैधानिक निकाय है। 102वां संविधान संशोधन-2018 एवं अनुच्छेद 338 बी के तहत इसे संवैधानिक दर्जा (8वां) दिया गया है। आयोग भारत सरकार के सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के अधीन कार्य करता है। प्रारंभ में राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग, राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग अधिनियम, 1993, 02-04-1993 को केन्द्रीय सरकार द्वारा गठित किया। 2016 तक इसे सात बार पुनर्गठित किया जा चुका है। हालांकि आयोग को संवैधानिक दर्जा दिए जाने के बाद केन्द्रीय सरकार द्वारा 15-08-2018 से राष्ट्रीय पिछडा वर्ग आयोग अधिनियम, 1993 को निरस्त कर दिया गया है।
आयोग दिनांक 11-08-2018 से प्रभावी माना गया। यह सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्ग के लिए कार्य करेगा। आयोग में एक अध्यक्ष, एक उपाध्यक्ष एवं तीन सदस्यों का प्रावधान किया गया है। इनका वेतन, श्रेणी और सेवा शर्त भारत सरकार के सचिव स्तर की मान्य होंगी, जो कार्यकाल सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के अधीन संचालित हैं।

राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग की स्थापना

मंडल मुकदमें के निर्णय (1992) में सर्वोच्च न्यायालय ने केन्द्र सरकार को पिछड़े वर्गों की सूची में शामिल होने योग्य (under inclusion), सूची में शामिल नहीं होने योग्य होने के बावजूद शामिल, तथा सूची से बाहर, असामिवष्ट होने संबंधी नागरिकों की शिकायतों की जांच के लिए एक स्थाई वैधानिक निकाय की स्थापना के लिए निर्देशित किया।इंदिरा साहनी वाद (मंडलवाद) निर्णय के अनुसार उच्चतम न्यायालय के निर्देश पर सरकार द्वारा वर्ष 1993 में पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन किया गया। राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (NCBC) की स्थापना 1993 में की गई। बाद में 102 वें संशोधन अधिनियम द्वारा आयोग को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया गया। इस उद्देश्य के लिए, संशोधन के अंतर्गत एक नये अनुच्छेद 338-बी का प्रावधान संविधान में किया गया। इस प्रकार आयोग एक वैधानिक निकाय मात्र न रहकर संवैधानिक निकाय बना दिया गया। नई व्यवस्था के अंतर्गत आयोग के कार्य का विषय क्षेत्र भी व्यापक बन गया।
ऐसा सामाजिक एवं शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों के हितों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए किया गया। दूसरे शब्दों में नये आयोग का वही दर्जा बन गया जो राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (NCSC) तथा राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (NCST) को प्राप्त था। आयोग का एक अध्यक्ष, एक उपाध्यक्ष तथा तीन सदस्य होते हैं। इनकी नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा उनके हस्ताक्षर एवं मुहर के माध्यम से होती है। उनकी सेवा शर्ते एवं सेवा अवधि का निर्धारण भी राष्ट्रपति करते हैं।

राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन

केन्द्रीय सरकार, एक निकाय का, जो राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के नाम से ज्ञात होगा, इस अधिनियम के अधीन उसे प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करने और उसे समनुदिष्ट कृत्यों का पालन करने के लिए गठन करेगी।
आयोग निम्नलिखित सदस्यों से मिलकर बनेगा, जो केन्द्रीय सरकार द्वारा नामनिर्देशित किए जाएंगे, अर्थात्-
  • (क) एक अध्यक्ष, जो उच्चतम न्यायालय या किसी उच्च न्यायालय का न्यायाधीश है या रहा है
  • (ख) एक समाज विज्ञानी
  • (ग) दो ऐसे व्यक्ति, जिन्हें पिछड़े वर्गों से संबंधित मामलों का विशेष ज्ञान है ; और
  • (घ) एक सदस्य-सचिव जो भारत सरकार के सचिव की पंक्ति का केन्द्रीय सरकार का कोई अधिकारी है या रहा है।

राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग की संरचना

यह आयोग एक बहुसदस्यीय संस्था है जिसमें एक अध्यक्ष के अतिरिक्त तीन अन्य सदस्य होते हैं। आयोग की स्वतंत्रता और दक्षता को बनाये रखने के लिये यह प्रावधान किया गया है कि आयोग का अध्यक्ष उच्चतम न्यायालय का अवकाश प्राप्त न्यायाधीश अथवा उच्च न्यायालय का न्यायाधीश होगा। इसके अतिरिक्त दो सदस्य ऐसे होंगे, जिन्हें पिछड़े वर्गों का ज्ञाना होगा। इसमें केन्द्र सरकार के एक ऐसे अधिकारी को नियुक्त किया जाता है जो सचिव के समकक्ष हो। इन सदस्यों का कार्यकाल अधिकतम 3 वर्ष का होता है। यह एक संविधानेत्तर संस्था है।
बहुसदस्यीय इस आयोग में अध्यक्ष सहित पाँच सदस्यों की व्यवस्था है:-
  • एक अध्यक्ष, जो कि उच्चतम न्यायालय या उच्च न्यायालय का न्यायाधीश हो या रह चुका हो।
  • एक समाजशास्त्री, जिन्हें सामाजिक संरचना का विशेष ज्ञान हो।
  • दो ऐसे व्यक्ति, जिन्हें पिछड़े वर्ग के मामलों की अच्छी जानकारी एवं विशेष अनुभव हो।
  • एक सदस्य ऐसा होगा, जो केन्द्र सरकार में भारत सरकार के सचिव की रैंक का हो या रह चका हो।

कार्यकाल एवं पदत्याग

  • प्रत्येक सदस्य, अपने पद ग्रहण की तारीख से 3 वर्ष की अवधि तक अपना पद धारण करेगा।
  • सदस्य किसी भी समय केंद्र सरकार को संबोधित अपने हस्ताक्षर सहित लेख द्वारा यथास्थिति, अध्यक्ष का पद त्याग सकेगा।
  • केंद्र सरकार किसी व्यक्ति को सदस्य के पद से हटा देगी, यदि वह व्यक्ति-
  • दिवालिया हो जाता है।
  • किसी न्यायपालिका के द्वारा उसे दण्डित किया जाता है।
  • किसी सक्षम न्यायालय के द्वारा उसे मानसिक अस्वस्थ घोषित कर दिया जाता है।
  • यदि अनुमति के बिना आयोग की बैठकों में भाग न ले रहा हो अथवा उसका पद पर बने रहना पिळले वर्गों के हितों के प्रतिकूल हो।

अध्यक्ष और सदस्यों की पदावधि और सेवा की शर्ते
  1. प्रत्येक सदस्य, अपने पद ग्रहण की तारीख से, तीन वर्ष की अवधि तक अपना पद धारण करेगा।
  2. सदस्य, किसी भी समय केन्द्रीय सरकार को सम्बोधित अपने हस्ताक्षर सहित लेख द्वारा, यथास्थिति, अध्यक्ष या सदस्य का पद त्याग सकेगा।
  3. केन्द्रीय सरकार किसी व्यक्ति को सदस्य के पद से हटा देगी यदि वह व्यक्ति-
  • (क) अनुन्मोचित दिवालिया हो जाता है
  • (ख) किसी ऐसे अपराध के लिए सिद्धदोष ठहराया जाता है और कारावास से दण्डादिष्ट किया जाता है जिसमें केन्द्रीय सरकार की राय में नैतिक अधमता अन्तर्वलित है
  • (ग) विकृतचित्त का हो जाता है और किसी सक्षम न्यायालय की ऐसा घोषणा विद्यमान है
  • (घ) कार्य करने से इंकार करता है या कार्य करने के लिए असमर्थ हो जाता है
  • (ङ) आयोग से अनुपस्थिति की इजाजत लिए बिना आयोग के लगातार तीन अधिवेशनों से अनुपस्थित रहता है ; या
  • (च) केंद्रीय सरकार की राय में अध्यक्ष या सदस्य के पद का ऐसा दुरुपयोग करता है जिसके कारण उस व्यक्ति का पद पर बने रहना पिछड़े वर्ग के हितों या लोकहित के लिए हानिकर हो गया है :
परंतु इस खंड के अधीन कोई व्यक्ति तब तक नहीं हटाया जाएगा जब तक उसे उस मामले में सुनवाई का अवसर न दे दिया गया हो।

(4) उपधारा (2) के अधीन या अन्यथा होने वाली कोई रिक्ति नए नामनिर्देशन द्वारा भरी जाएगी।

(5) अध्यक्ष और सदस्यों को संदेय वेतन और भत्ते तथा उनकी सेवा के अन्य निबंधन और शर्ते वे होंगी, जो विहित की जाएं।

5. आयोग के अधिकारी और अन्य कर्मचारी
  • (1) केंद्रीय सरकार आयोग के लिए एक सचिव तथा ऐसे अन्य अधिकारियों और कर्मचारियों की व्यवस्था करेगी जो आयोग के कृत्यों का दक्षतापूर्ण पालन करने के लिए आवश्यक हों।
  • (2) आयोग के प्रयोजन के लिए नियुक्त अधिकारियों और अन्य कर्मचारियों को संदेय वेतन और भत्ते तथा उनकी सेवा के अन्य निबंधन और शर्ते वे होंगी, जो विहित की जाएं।
6. वेतन और भत्तों का अनुदानों में से संदाय - अध्यक्ष और सदस्यों को संदेय वेतन और भत्तों का तथा प्रशासनिक व्ययों का, जिनके अंतर्गत धारा 5 में निर्दिष्ट अधिकारियों और अन्य कर्मचारियों को संदेय वेतन, भत्ते और पेंशन हैं, धारा 12 की उपधारा (1) में निर्दिष्ट अनुदानों में से संदाय किए जाएगा।

7. रिक्तियों आदि से आयोग की कार्यवाहियों का अविधिमान्य न होना
आयोग का कोई कार्य या कार्यवाही केवल इस आधार पर अविधिमान्य नहीं होगी कि आयोग में कोई रिक्ति है या उसके गठन में कोई त्रुटि है।

8. प्रक्रिया का आयोग द्वारा विनियमित किया जाना
(1) आयोग का अधिवेशन, जब भी आवश्यकता हो, ऐसे समय और स्थान पर होगा जो अध्यक्ष ठीक समझे।
(2) आयोग अपनी प्रक्रिया स्वयं विनियमित करेगा।
(3) आयोग के सभी आदेश और विनिश्चय सदस्य-सचिव द्वारा या इस निमित्त सदस्य-सचिव द्वारा सम्यक् रूप से प्राधिकृत आयोग के किसी अन्य अधिकारी द्वारा अधिप्रमाणित किए जाएंगे।

राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के कार्य

सामाजिक-शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों के अधिकारों की वंचना तथा सुरक्षा से सम्बन्धित शिकायतों की जांच और अनुसंधान करना;-
  • केन्द्र अथवा किसी राज्य में सामाजिक-शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों के सामाजिक-आर्थिक विकास में भागीदारी तथा इसके लिए सलाह देना, साथ ही उनके विकास सम्बन्धी प्रगति का मूल्यांकन करना।
  • इन सुरक्षा उपायों पर एक प्रतिवेदन भारत के राष्ट्रपति को प्रत्येक वर्ष, अथवा जब भी वह उचित समझे, सौंपना।
  • इस आयोग का सबसे महत्वपूर्ण कार्य है- पिछड़े वर्गों की केन्द्रीय सूची में जातियों को शामिल करना।
  • किसी भी पिछड़ी जाति को इस सूची में शामिल करने के अनुरोध पर विचार करना।
  • आयोग इस शिकायत की भी जांच करेगा कि कुछ जातियों का प्रतिनिधित्व न तो ज्यादा हो और न ही कम जिससे आरक्षण का लाभ सभी जातियों को समान रूप से मिले।
  • क्रीमी लेयर की संकल्पना का प्रतिपादन उच्चतम न्यायालय ने किया था लेकिन पिछड़ा वर्ग आयोग के द्वारा क्रीमी लेयर की सीमा के निर्धारण की सलाह सरकार को दी जाती है।
  • सामाजिक-शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों की सुरक्षा, कल्याण, तथा सामाजिक-आर्थिक विकास के उपायों को प्रभावी रूप से लागू करने के विषय में केन्द्र अथवा राज्य को अनुशंसाएं देना।
  • सामाजिक-शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों की सुरक्षा, कल्याण तथा विकास एवं उन्नति के लिए अन्य कार्य संपादित करना जिनके लिए राष्ट्रपति निर्दिष्ट करें।
  • सामाजिक-शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों की संवैधानिक एवं वैधानिक सुरक्षा से सम्बन्धित सभी मामलों के अनुसंधान एवं अनुश्रवण तथा उनके कार्य संचालन का मूल्यांकन
  • पिछड़े वर्ग के लिए संवैधानिक या विधिक उपबंध ठीक से लागू हो रहे हैं या नहीं, इसकी जाँच करना तथा इसके प्रभावी क्रियान्वयन के लिए सरकार को सिफारिश करना।
  • किसी भी वर्ग के नागरिकों को पिछड़ा वर्ग के रूप में शामिल करने संबंधी अनुरोध की जाँच करना।
  • पिछड़े वर्गों की स्थिति में सुधार के लिए परामर्श देना।
  • पिछड़े वर्गों के कल्याण के लिए चलाए जा रहे कार्यक्रमों की जाँच करना तथा उनके भली-भाँति संचालन के लिए सरकार को परामर्श देना।
  • ऐसी सूचियों में किसी पिछड़े वर्ग को पर्याप्त से अधिक तथा पर्याप्त से कम प्रतिनिधित्व देने संबंधी शिकायतों को सुधारना तथा इन मामलों में केन्द्र सरकार को सलाह देना।
  • क्रीमीलेयर की धन-सीमा के बारे में सरकार को परामर्श देना।
  • पिछड़े वर्गों में अधिकारों के प्रति जागरूकता उत्पन्न करना।
  • केन्द्र सरकार की यह बाध्यता है कि प्रत्येक 10 वर्षों में ऐसे वर्गों की समीक्षा करें तथा इन सूचिया का संशोधित करें।

आयोग का प्रतिवेदन

आयोग अपना वार्षिक प्रतिवेदन राष्ट्रपति को समर्पित करता है। इसके अतिरिक्त भी वह आवश्यक होने पर अपना प्रतिवेदन उन्हें समर्पित कर सकता है।
राष्ट्रपति ऐसे प्रतिवेदन को संसद के समक्ष प्रस्तुत करते हैं,
इसके साथ ही आयोग द्वारा अनुशंसाओं पर की गई कार्यवाही का विवरण भी एक ज्ञापन में संलग्न होता है। ज्ञापन में जिन अनुशंसाओं पर कार्यवाही नहीं की जा सकती, उसके बारे में कारण भी स्पष्ट किया जाता है।
राष्ट्रपति आयोग द्वारा प्रेषित किसी राज्य से सम्बन्धित प्रतिवेदन को सम्बन्धित राज्य को अग्रसारित करते हैं।
इस प्राप्त प्रतिवेदन को राज्य सरकार राज्य विधायिका के समक्ष प्रस्तुत करती है, जिसके साथ आयोग की अनुशंसाओं पर की गई कार्यवाही को दर्शाने वाला एक ज्ञापन भी सलंग्न होता है।
जिन अनुशंसाओं को लागू नहीं किया जा सकता, उनके कारणों की व्याख्या भी ज्ञापन में होती है।

आयोग की शक्तियां

आयोग को अपनी प्रक्रियाएं स्वयं निर्धारित एवं विनियमित करने की शक्तियां प्राप्त हैं। किसी मामले के अनुसंधान अथवा किसी शिकायत की जांच करते समय आयोग को न्यायिक शक्तियां विहित होती हैं। विशेषकर निम्नलिखित मामलों में:
  • भारत के किसी भूभाग से किसी भी व्यक्ति को आयोग के समक्ष बुलाने एवं उसकी उपस्थिति सुनिश्चित कराने एवं शपथ कराकर उससे पूछताछ करना।
  • किसी भी दस्तावेज की खोज और प्रस्तुतीकरण की मांग करता।
  • शपथ-पत्रों पर साक्ष्य प्राप्त करना।
  • किसी भी न्यायालय या कार्यालय से किसी भी सार्वजनिक अभिलेख की मांग करना।
  • गवाहों और दस्तावेजों के परीक्षण के लिए समन जारी करना ।
  • कोई अन्य मामला, जिसका विनिश्चय राष्ट्रपति करे
  • केंद्र सरकार तथा राज्य सरकारों को सामाजिक-शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों को प्रभावित करने वाले समस्त नीतिगत मामलों में आयोग की सलाह लेनी जरूरी है।
आयोग अपनी कार्य प्रक्रिया खुद निर्धारित करता है तथा एक सिविल न्यायालय की शक्तियां धारण करता है। यह भारतीय भू-भाग में निवास करने वाले किसी भी व्यक्ति को सम्मन जारी कर सकता है एवं किसी भी दस्तावेज को प्राप्त कर सकता है। किसी अदालत या कार्यालय के किसी भी सार्वजनिक अभिलेख की मांग कर सकता है।

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