कॉपीराइट क्या होता है?
कॉपीराइट का संबंध जनसंचार से जुड़ी रचनात्मक गतिविधियों के विशिष्ट रूपों से होता है। वस्तुतः इसका संबंध जनसंचार के समस्त रूपों और पद्धतियों, मुद्रित सामग्री, ध्वनि एवं टेलीविजन प्रसारण, सार्वजनिक प्रदर्शन वाली फिल्मों एवं सिनेमा से होता है। कॉपीराइट कानून का उद्देश्य व्यक्तिगत रचनात्मकता का संरक्षण एवं संवर्द्धन तथा उसके उत्पाद को यथासंभव व्यापक स्तर पर उपलब्ध कराना है।
कॉपीराइट के अंतर्गत प्राप्त विशेषाधिकार लेखक को न केवल उसके जीवन काल, अपितु उसकी मृत्यु के बाद भी एक निश्चित अवधि तक प्राप्त रहता है। लेखक की मृत्यु के बाद प्रदत्त संरक्षण अवधि सामान्यतः 50 वर्ष होती है, लेकिन भारत में यह 60 वर्ष है। कॉपीराइट के तहत् संरक्षित कृतियों के अनुचित उपयोग (अतिक्रमण) के मामलों से निपटने के लिए कॉपीराइट कानून में स्पष्ट धाराएं होती हैं। इन धाराओं की प्रकृति दीवानी और फौजदारी दोनों तरह की हो सकती है। उनमें से कौन सी धारा लागू होगी, यह अतिक्रमण की प्रकृति पर निर्भर करता है, लेकिन एक बार कॉपीराइट संरक्षण समाप्त होने के बाद वह कृति सार्वजनिक उपयोग की वस्तु बन जाती है और तब कोई भी उसका उपयोग अनुमति प्राप्त किए बिना ही कर सकता है।
कॉपीराइट कानून विचारों को नहीं बल्कि उनकी अभिव्यक्ति के स्वरूप को संरक्षण देता है। एक बार यदि आविष्कार का कोई विचार (जैसे एक सक्षम कार-इंजन को बनाने के तरीके का विचार) किसी प्रत्यक्ष रूप में जैसे लेख के रूप में व्यक्त कर दिया जाए तो कॉपीराइट संरक्षण उस लेख को मिलेगा।
लेखक किसी अन्य को उस लेख को पुनः प्रकाशित करने से रोक सकता है, लेकिन आविष्कार के लिए कोई भी उस लेख का उपयोग कर सकता है। आविष्कार के संरक्षण के लिए पेटेंट संरक्षण प्रावधानों का सहारा लेना होगा। कोई कृति भले ही खराब हो, यहाँ तक कि अपने उद्देश्य की प्राप्ति में असफल हो, इसके बावजूद वह संरक्षण प्राप्ति की अधिकारी है। कॉपीराइट संरक्षण का संबंध उस कार्य के उपयोग से नहीं है।
कॉपीराइट संरक्षण प्राप्त करने के लिए आवश्यक है कि वह कार्य मौलिक हो। संरक्षण प्राप्ति के लिए आवश्यक नहीं है कि वह कार्य कल्पनाशीलता और अन्वेषणात्मकता की कसौटी पर खरा उतरे। संरक्षण, संबंधित कृति की गुणवत्ता अथवा उसके मूल्य से असंबद्ध होती है।
कॉपीराइट कानून का व्यावहारिक महत्त्व इस बात पर निर्भर है कि वह प्रभावी ढंग से किस सीमा तक लागू हो पाता है। यह लेखकों और उनके उत्तराधिकारियों अथवा प्रतिनिधियों को सृजन एवं ज्ञान के प्रसार के लिए प्रोत्साहित करता है।
लगभग सभी देशों के कॉपीराइट कानून निम्नलिखित प्रकार के कार्यों को संरक्षण प्रदान करते हैं-
- साहित्यिक कार्य-उपन्यास, लघु कथाएं, कविताएं, नाट्य रचनाएं एवं अन्य प्रकार का लेखन। संरक्षण इस बात पर निर्भर नहीं होता कि रचनाओं की विषयवस्तु, लंबाई, उद्देश्य और आकार क्या है तथा यह प्रकाशित है अथवा अप्रकाशित ।
- संगीतात्मक कृतियां- शास्त्रीय अथवा सुगम संगीत, गाने, समूह गान, संगीत प्रधान कृतियां एवं नाटिकाएं।
- कलात्मक कृतियां- द्विआयामी कृतियां, जैसे रेखाचित्र, लिथोग्राफ आदि एवं त्रि-आयामी कृतियां जैसे मूर्ति निर्माण एवं भवन-निर्माण संबंधी कृतियां ।
- छाया चित्र संबंधी कृतियां- चाहे जो विषय वस्तु हो और उसे चाहे जिस उद्देश्य के लिए तैयार किया गया हो।
- चल चित्र एवं सिनेमा संबंधी कृतियां- मूक चलचित्र अथवा सवाक् चलचित्र। संरक्षण का संबंध इस बात से नहीं होता कि उनका उद्देश्य, लंबाई, पद्धति और तकनीकी प्रक्रिया क्या है।
- कम्प्यूटर प्रोग्राम।
- नक्शे एवं तकनीकी रेखाचित्र।
उपर्युक्त बातों के अलावा कई देशों के कॉपीराइट कानून 'प्रायोगिक कलाओं' (उदाहरण के तौर पर कलात्मक गहने, लैंप, वॉलपेपर, फर्नीचर आदि) कोरियोग्राफी संबंधी कार्य, ध्वनि-अंकित रिकार्ड, टेपों और प्रसारणों को भी संरक्षण प्रदान करते हैं।
कॉपीराइट स्वामी के अधिकार
कॉपीराइट कानूनों द्वारा किसी कार्य के स्वामी को कॉपीराइट के माध्यम से प्रदत्त अधिकार को बहुधा एकांतिक अधिकार (एक्सक्लुसिव राइट) कहा जाता है। स्वामी अपने कार्य का उपयोग इच्छानुसार कर सकता है। निस्संदेह ऐसा करते समय उसे अन्य लोगों के विधि सम्मत अधिकारों और हितों का सम्मान करना होगा। यदि कोई उसकी अनुमति के बिना उसके कार्य का उपयोग करना चाहे, तो वह उन्हें ऐसा करने से रोक सकता है। कॉपीराइट कानून द्वारा प्रदत्त विभिन्न अधिकार ये हैं-
- पुनः प्रकाशन का अधिकार- कॉपीराइट का स्वामी अन्य लोगों को अपने कार्य की प्रतिलिपि करने से रोक सकता है। कॉपीराइट शब्द का संबंध मुख्य कार्य से अर्थात् कलात्मक कार्य अथवा उसकी प्रतिलिपि से है।
- क्रियान्वयन अधिकार- कार्य के सार्वजनिक प्रदर्शन के लिए उसके कॉपीराइट के स्वामी की अनुमति लेनी पड़ती है। यह अधिकार काफी महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि कॉपीराइट से संरक्षित कोई कार्य प्रतिलिपि या पुनर्प्रकाशन के बिना ही अनेक लोगों तक संप्रेषित किया जा सकता है।
- रिकार्डिंग अधिकार- कॉपीराइट से संरक्षित किसी कार्य की ध्वनि रिकार्डिंग करने के लिए उसके स्वामी से अनुमति लेनी पड़ती है।
- चलचित्र अधिकार- दर्शकों के समक्ष बिंबो को एक सतत क्रम में प्रस्तुत करने के लिए चलचित्र निर्माण अथवा दृश्य छायांकन का अधिकार कॉपीराइट कानूनों से संरक्षित है। कॉपीराइट कानूनों की तकनीकी भाषा में चलचित्रों को अक्सर 'सिनेमाई कृति' कहा जाता है। कुछ देशों में चलचित्र (मोशन फिक्चर्स) को फिल्म कहते हैं।
- प्रसारण अधिकार- तारों अथवा केबिलों के माध्यम से किसी कार्य को जन सामान्य के बीच प्रसारित करने के लिए कॉपीराइट के स्वामी की अनुमति चाहिए।
- अनुवाद एवं अंगीकरण अधिकार- कॉपीराइट से संरक्षित किसी कार्य के अनुवाद अथवा अंगीकरण के लिए कॉपीराइट के स्वामी की अनुमति लेनी पड़ती है।
- नैतिक अधिकार- बर्न समझौते में शामिल देशों से अपेक्षा की जाती है कि वे लेखकों को ये अधिकार प्रदान करें-
(अ) कृति पर लेखकीय दावों का अधिकार ।
(ब) कृति में किसी भी ऐसे परिवर्तन अथवा संशोधन पर आपत्ति का अधिकार, जो लेखक के सम्मान और प्रतिष्ठा को क्षति पहुँचाता हो। ध्यातव्य है कि कॉपीराइट का अधिकार कोई औपचारिकता पूरी किए बिना अथवा पंजीकरण कराए बिना ही प्राप्त हो जाता है।
इसलिए इसके अंतर्गत संरक्षण प्राप्ति के लिए आवेदन का प्रश्न ही नहीं उठता लेकिन अधिकार को लागू कराने अथवा अन्य उद्देश्य के लिए पंजीकरण की आवश्यकता पड़ सकती है। किसी अन्य पक्ष द्वारा कृति के प्रतिलिपिकरण को सिद्ध करना हमेशा आसान नहीं होता। प्रतिलिपि करने का काम अक्सर गोपनीय ढंग से किया जाता है।
कॉपीराइट उल्लंघनः सरकार की नीति और उत्पाद
- सरकार ने देश में पाइरेसी की समस्या से निपटने के लिए IPR (बौद्धिक सम्पदा अधिकार) नीति के माध्यम से कॉपीराइट कानून के कठोर प्रवर्तन की योजना बनाई गई है।
- औद्योगिक नीति एवं संवर्द्धन विभाग (Department of industrial policy and promotion:Dipp) द्वारा IPR पर राष्ट्रव्यापी जागरूकता अभियान आरम्भ किया जाएगा।
- सरकार ने कॉपीराइट के ऑनलाइन उल्लंघन के विरूद्ध कठोर चेतावनी जारी की है। इस चेतावनी में कॉपीराइट कानून के अंतर्गत दण्डनीय अपराधों के बारे में बताया गया है।
वर्तमान समस्या
- भारत में संगीत, पुस्तकों, फिल्मों तथा साथ ही अन्य उत्पादों के मामले में बड़े पैमाने पर कॉपीराइट उल्लंघन के मामले देखे जा रहे हैं।
- कॉपीराइट उल्लंघन में ऑनलाइन मीडिया की बहुत अधिक भागीदारी है।
भारत में कॉपीराइट कानून
भारत में कॉपीराइट कानून की विषय-वस्तु को कॉपीराइट अधिनियम, 1957 द्वारा नियंत्रित किया जाता है।
इसे 1957 से अब तक छः बार संशोधित किया गया है। नवीनतम संशोधन 2012 में हुआ था ।
भारत कॉपीराइट कानून की विषय-वस्तु को प्रशासित करने वाली कई अंतर्राष्ट्रीय कन्वेंशन का सदस्य है। ये हैं- बर्न कन्वेंशन - 1886, यूनिवर्सल कन्वेंशन-1951, रोम कन्वेंशन-1961 एवं बौद्धिक सम्पदा अधिकारों के व्यापार संबंधी पक्षों पर समझौता (Agreement on Trade Related Aspects of Intellectual Property Right: TRIPS) |
सामान्य कॉपीराइट उल्लंघन
- बिक्री या किराए पर देने के लिए उल्लंघनकारी (Infringing) प्रतिलिपियाँ बनाना या उन प्रतिलिपियों की बिक्री करना या किराए पर देना।
- सार्वजनिक रूप से ऐसे कार्यों के लिए किसी स्थान के प्रयोग की अनुमति देना जहाँ इस प्रकार का कार्य निष्पादन हो जिससे कॉपीराइट का उल्लंघन हो।
- उल्लंघनकारी प्रतिलिपियों को व्यापारिक प्रयोजन से या कॉपीराइट के स्वामी के हित को हानि पहुँचाने के उद्देश्य से वितरित करना।
- व्यापार के माध्यम से उल्लंघनकारी प्रतिलिपियों का सार्वजनिक प्रदर्शन।
- भारत में उल्लंघनकारी प्रतिलिपियों का आयात करना।
सरकार की पहल के सकारात्मक पक्ष
- जागरूकता अभियान जनता को बौद्धिक संपदा अधिकारों के संबंध में संवेदनशील बनाएँगे।
- नई IPR नीति, IPR प्रशासन के लिए विधिक ढाँचा स्थापित करती है।
- इसने यह लक्ष्य भी निर्धारित किया है कि वर्ष 2017 तक सरकार द्वारा ट्रेडमार्क का अनुमोदन करने में लगने वाले समय को एक वर्ष से कम करके एक महीना कर देगी।
कमियाँ
- हाल ही में सरकार द्वारा कॉपीराइट उल्लंघन के लिए कठोर दण्ड देने का दृष्टिकोण अपनाया गया है। वस्तुतः यह दृष्टिकोण सही नहीं है। पाइरेसी को केवल विनाशकारी शक्ति के रूप में ही देखा जा रहा है। इसका एक उत्पादक पहलू भी है कि इससे ज्ञान में बहुसंख्यक लोगों को साझेदारी मिलती है। इसके इस पहलू की पूर्ण रूप से उपेक्षा की गयी है।
- इसके अतिरिक्त मीडिया पाइरेसी के मूल कारण अर्थात् वैश्विक मूल्य निर्धारण समस्या (मीडिया संबंधी वस्तुओं के उच्च मूल्य, निम्न आयों और सस्ती डिजिटल प्रौद्योगिकियों) पर विचार नहीं किया जा रहा है।
कॉपीराइट अधिनियम के दण्डात्मक प्रावधान
- धारा 63 उल्लंघन के अपराधों के संबंध में है। यह 'जानबूझकर' कॉपीराइट का उल्लंघन करने वाले या उसमें भागीदारी करने वाले व्यक्ति को कारावास और जुर्माने का दण्ड देने का प्रावधान करती है।
- न्यूनतम 6 महीने का कारावास (जिसे 3 वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है) और 3 लाख रूपए तक जुर्माने का दण्ड दिया जा सकता है।
- धारा 63-A दोबारा किए जाने वाले अपराधों से व्यवहार करती है और पुनः अपराध करने वाले के लिए पहले से अधिक जुर्माने और कारावास का प्रावधान करती है।
- धारा 65 उल्लंघनकारी प्रतिलिपियाँ निर्मित करने के लिए प्लेट (डिजाईन) रखने से संबंधित है।
- धारा 65-A डिजिटल अधिकारों के प्रबंधन से संबंधित है।
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