पेटेंट
किसी राष्ट्र/राज्य द्वारा आविष्कारकों को किसी आविष्कार के सार्वजनिक प्रकटन के बदले में सीमित अवधि के लिए प्रदत्त अनन्य अधिकार है। पेटेंट से नवीनता, अप्रत्यक्षता एवं उपयोगिता के तीन मापदण्डों पर खरा उतरने की अपेक्षा की जाती है। पेटेंट को कानूनी रूप से तीन वर्गों में विभाजित किया जाता है-
1. उपयोगिता पेटेंट- नई और उपयोगी प्रक्रिया, उपकरण, मशीन, विनिर्मित सामान, रासायनिक पदार्थ या सूत्र के आविष्कार के लिए आवेदन दाखिल करने की तारीख से 20 वर्ष की अविध के लिए पेटेंट दिया जाता है।
2. डिजाइन पेटेंट- नवीन एवं मौलिक डिजाइनों को पेटेंट दिया जाता है।
3. पादप पेटेंट- कुछ राष्ट्रों में पादप एवं उसके उत्पादों पर पेटेंट दिया जाता है। यह 20 वर्षों के लिए होता है। पेटेंट प्राप्त व्यक्ति उसे किसी को दे सकता है या बंधक रख सकता है। यदि कोई व्यक्ति पेटेंट प्राप्ति व्यक्ति की अधिकृत अनुमति के बिना, उसके पेटेंट का प्रयोग करता है, तो पेटेंट प्राप्त व्यक्ति उस पर हर्जाने का मुकदमा दायर कर सकता है। ट्रिप्स, ट्रेडमार्क या कॉपीराइट के उल्लंघन के मामलों में दाण्डिक प्रक्रियाओं एवं शक्तियों का प्रावधान बनाने के लिए सदस्य राष्ट्रों से कहता है। हर आविष्कार को पेटेंट नहीं कराया जा सकता। आविष्कार के पेटेंट-योग्य होने के लिए आवश्यक है कि वह नवीन हो, उससे कोई आविष्कारात्मक प्रक्रिया जुड़ी हो और उसका कोई औद्योगिक उपयोग हो। ये मूल मानदंड लगभग सभी देशों के पेटेंट कानूनों में शामिल हैं।
लेकिन कुछ देशों में कई वस्तुओं, प्रक्रियाओं एवं विचारों को नया होने के बावजूद पेटेंट नहीं कराया जा सकता। भारत में जिन वस्तुओं, विचारों और प्रक्रियाओं को पेटेंट नहीं कराया जा सकता है इस प्रकार हैं-
- सुस्थापित प्राकृतिक नियमों के विपरीत किए गए निरर्थक प्रकृति के दावे।
- ऐसी कोई भी चीज, जो कानून, नैतिकता अथवा सार्वजनिक स्वास्थ्य के विपरीत हो।
- ज्ञात उपकरणों का ऐसा संयोजन, पुनर्संयोजन अथवा अनुकृति, जिसमें प्रत्येक उपकरण पहले से ही ज्ञात विधियों के अनुसार एक-दूसरे से स्वतंत्र ढंग से क्रियाशील हो।
- किसी मशीन, उपकरण या साजो-सामान को अधिक क्षमतायुक्त बनाने अथवा उसमें सुधार करने अथवा मरम्मत करने अथवा उसके उत्पादन पर नियंत्रण के लिए अपनाई जाने वाली निर्माण प्रक्रिया में प्रयुक्त की जाने वाली परीक्षण विधि या क्रिया विधि।
- कृषि अथवा बागवानी का कोई तरीका।
- परमाणु ऊर्जा संबंधी आविष्कार।
- कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर।
- सौंदर्यबोधी कृतियां।
- खोज, वैज्ञानिक सिद्धांत, गणितीय विधियां ।
- खेल खेलने अथवा व्यापार करने की मानसिक प्रक्रिया से संबंधित योजनाएं, नियम और विधियां।
- सूचनाओं का प्रस्तुतीकरण।
- शल्यक्रिया अथवा चिकित्सकीय नुस्खों से मनुष्यों अथवा जानवरों के इलाज की विधियां।
- जंतु, पौधों एवं उनके उत्पादन एवं संवर्धन की जैविक विधियां (लेकिन सूक्ष्म जीवों के संबंध में पेटेंट अधिकार प्राप्त किया जा सकता है।)
- रासायनिक संश्लेषण के माध्यम से बनाए जा सकने वाले पदार्थ, जैसे खाद्य पदार्थ एवं औषधियाँ।
पेटेंट प्राप्त करने की प्रक्रिया
प्रत्येक आविष्कार को पेटेंट कराने के लिए अलग से आवेदन दिया जाना चाहिए, लेकिन यदि आविष्कारों का कोई समूह परस्पर इस तरह से संबद्ध है कि उनसे आविष्कार की एक सामान्य अवधारणा निर्मित होती है, तो उस स्थिति में केवल एक आवेदन-पत्र देना भी पर्याप्त होगा।
आविष्कार का शीर्षक यथा संभव छोटा और विशिष्टता-बोधक होना चाहिए। आवेदन-पत्र में प्रस्तुत विवरणों से आविष्कार के संबंध में सटीक जानकारी मिलनी चाहिए।
पेटेंट संबंधी आवेदन-पत्र अथवा दस्तावेज एक तकनीकी दस्तावेज होता है। अतः उसे जिस देश में प्रस्तुत करना हो, उसकी कानूनी आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर तैयार किया जाना चाहिए। आविष्कारों को पेटेंट कराने की विधियां हर देश में कमोबेश एक जैसी ही हैं।
पेटेंट के दावे के लिए पेश किए जाने वाले इन दस्तावेजों को पेटेंट कानूनों की जानकारी रखने वाला कोई निपुण व्यक्ति ही तैयार कर सकता है। अतः सामान्यतः पेटेंट का आवेदन पत्र तैयार करने के लिए किसी पेटेंट या अटार्नी की सेवाएं ली जाती हैं।
पेटेंट के दावे की रूपरेखा तैयार करने में पेटेंट एजेंट के अनुभव और निपुणता की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। आविष्कारक के हितों की रक्षा करने के लिए मसौदे में आविष्कार के विभिन्न पक्षों को अत्यंत व्यापक ढंग से शामिल किया जाना चाहिए। पेटेंट एजेंट यह सलाह भी देता है कि कोई आविष्कार पेटेंट कराए जाने योग्य है, अथवा नहीं।
पेटेंट से प्राप्त अधिकार
पेटेंट से प्राप्त अधिकार के बारे में अक्सर गलतफहमी हो जाती है। यह स्पष्ट तौर पर समझ लेना चाहिए कि किसी आविष्कार का पेटेंट-अधिकार प्राप्त होने से उसके बारे में कोई सकारात्मक (पॉजिटिव) अधिकार नहीं मिलता। यह स्थिति अन्य प्रकार की निजी संपत्तियों के स्वामी को उनके संबंध में प्राप्त अधिकारों से भिन्न है। उनके स्वामी को सकारात्मक अधिकार प्राप्त होता है। इसके विपरीत पेटेंट के स्वामी का अधिकार मात्र एक नकारात्मक अधिकार है। इसके माध्यम से पेटेंट-धारक को अन्य लोगों को पेटेंट कराए गए आविष्कार का उपयोग करने अथवा उसे बेचने से रोकने का नकारात्मक अधिकार मिलता है। इस प्रकार पेटेंट किसी आविष्कारक को अपने आविष्कार के उपयोग का वैधानिक अधिकार देने के बजाए उसे अन्य लोगों को इसका उपयोग करने से रोकने का कानूनी अधिकार देता है। स्पष्ट है कि पेटेंट के स्वामी को प्राप्त निषेधात्मक सुविधा एक नकारात्मक अधिकार है। पेटेंट का अधिकार केवल ऐसे मामलों में सकारात्मक अधिकार का रूप लेता है, जो किसी कला के लिए मूलभूत महत्त्व के हों। राज्य द्वारा आविष्कारक को यह अधिकार सार्वजनिक हितों को ध्यान में रखकर दिया जाता है। आविष्कारक अपने आविष्कार को सार्वजनिक स्तर पर प्रकट करता है और उसके एवज में राज्य एक निर्धारित अवधि के लिए उसे अपने आविष्कार पर एकाधिकार देता है। पेटेंट प्रदान किए जाने की प्रक्रिया में आविष्कार के प्रकटीकरण का काफी महत्त्व है।
पेटेण्ट सहयोग संधि
इसमें वे सभी देश जो पेटेण्ट, मेड्रिड प्रणाली, हैग प्रणाली तथा लिस्बन प्रणाली के तहत सुरक्षा चाहते हैं, आवेदन कर सकते हैं। WIPO इन पंजीकरण सेवाओं को प्रकाशित कर इन संधियों में सामंजस्य तथा सरलीकृत बनाकर इसमें सक्रिय भूमिका निभाता है।
पेटेण्ट कानून में इस पर भी ध्यान दिया जाता है, कि पहली बार पेटेण्ट का दावा करने वाला या पहली बार आविष्कार करने वाले में किसे मौलिक माना जाए। साथ ही ये सभी संधियाँ कॉपीराईट व इससे संबंधित अधिकारों के लिए सामान्य मानकों पर जोर देती हैं।
भारतीय कंपनियों द्वारा जीते कुछ कानूनी मामले
स्विट्जरलैंड की दवा कंपनी नोवर्टिस जिसने ल्यूकोमिया के उपचार की अपनी दवा ग्लिविक को उन्मुक्ति प्रदान करने का दावा प्रस्तुत करने के लिए भारतीय पेटेंट अधिनियम की धारा 3 (d) को चुनौती दी कि ग्लिविक उसके पुराने संस्करण, जिसका पेटेंट समाप्त हो गया है, की अपेक्षा बड़े पैमाने पर नवीन परिवर्तित रूप है। अपील के पश्चात्, नोवर्टिस के निवेदन को रद्द कर दिया गया और भारतीय जेनेरिक कंपनियों को दवा बनाने का अधिकार दिया गया।
बेयर हेल्थकेयर, जर्मनी की दवा कंपनी, द्वारा दायर याचिका कि भारत के औषधि महानियंत्रक द्वारा कैंसर दवा नेक्सावर के जेनेरिक संस्करण के विपणन का अधिकार भारतीय दवा कंपनी सिपला को देने के अनुमोदन को रोके जाने को दिल्ली उच्च न्यायालय ने निरस्त कर दिया। हालांकि, न्यायालय ने चेतावनी दी कि यदि भारतीय दवा कंपनी पेटेंट के उल्लंघन की दोषी पाई गई तो उसे बेयर को हर्जाना देना होगा।
एक अन्य मामले में, सिपला ने कैंसर रोधी दवा टारसेवा, जिसका वास्तविक पेटेंट स्विट्जरलैंड की दवा कंपनी 'हॉफमैन ला रोशे" के पास था, के जेनेरिक संस्करण के उत्पादन एवं विपणन का अधिकार हासिल कर लिया (जब मामला उच्च न्यायालय और फिर सर्वोच्च न्यायालय में पहुंचा)।
स्विस क्लेम
'स्विस क्लेम' पेटेंट के लिए एक दावा है, जिसमें किसी पदार्थ या संयोजन जो पहले से किसी चिकित्सकीय उद्देश्य हेतु उपयोग में लाया जा रहा है, को नए चिकित्सीय उद्देश्य के लिए उपयोग करने हेतु नियत या विर्निदिष्ट किया गया है। मात्र किसी मौजूदा पदार्थ के नए रूप की खोज जो पदार्थ की प्रभावोत्पादकता को न बढ़ाती हो, आविष्कार नहीं है और फलतः पेटेन्ट के योग्य नहीं है।
इस खण्ड के उद्देश्य के लिए नमक, जैव यौगिक (अम्ल एवं एल्कोहल के मिश्रण से बना प्राकृतिक पदार्थ), ईथर, बहुलक, उपापचयी, विशुद्ध रूप, कणीय आकार, समभारी, समभारियों के मिश्रण, यौगिक, एवं मौजूदा पदार्थों के अन्य संजातों को एक समान माना जाएगा, जब तक कि वे प्रभावोत्पादकता के संदर्भ में स्वभाव एवं गुणधर्मो में महत्त्वपूर्ण रूप से भिन्न हों।
न्यायालय ने 'प्रभावोत्पादकता' की औषधि की वांछित उपचारात्मक प्रभाव उत्पन्न करने की क्षमता के रूप में व्याख्या की अर्थात् नई खोज रोग का उपचार करने में शरीर पर सकारात्मक प्रभाव डालने में कितनी प्रभावी होगी।
प्रभावोत्पादकता का परीक्षण सफल करने के लिये इसे वैज्ञानिक प्रमाण के साथ यह दिखाना होगा कि परिचित तत्त्व का नवीन रूप उस तत्त्व की मौजूदा क्षमता में वृद्धि का परिणाम है।
यदि आविष्कार सिर्फ ज्ञात पदार्थ का संजात (Derivative) है तो यह दिखाना होगा कि संजात के गुण क्षमता/प्रभावोत्पादकता के संदर्भ में महत्त्वपूर्ण रूप से अलग है।
अनिवार्य लाइसेंसिंग
पेटेंट देने की तिथि से तीन वर्ष बाद कोई व्यक्ति कुछ शर्तों के अधीन, जैसे पेटेंट आविष्कार के संदर्भ में लोगों की न्यायसंगत जरूरतें पूरी नहीं हुई हैं, या पेटेंट युक्त आविष्कार लोगों को उचित कीमत पर उपलब्ध नहीं है, या पेटेंट युक्त आविष्कार ने भारत में काम नहीं किया है, रहते हुए पेटेंट की अनिवार्य लाइसेंस की अनुमति के लिए कंट्रोलर ऑफ पेटेंट को आवेदन कर सकता है।
कंट्रोलर, यदि संतुष्ट हो जाता है कि शर्तों को पूरा कर लिया गया है, ऐसी शर्तों के अंतर्गत जैसा वह उचित समझे लाइसेंस जारी करने का आदेश दे सकता है। हालांकि, अनिवार्य लाइसेंस की अनुमति देने से पूर्व, कंट्रोलर ऑफ पेटेंट निम्न कारकों पर गौर करेगा- खोज की प्रकृति, पेटेंट के बाद बीता समय, आविष्कार के सम्पूर्ण उपयोग के लिए पेटेंट धारक या लाइसेंस धारक द्वारा पूर्व में उठाए कदम, लोगों के लाभ के लिए आविष्कार पर कार्य करने की आवेदक की योग्यता ।
यदि अनिवार्य लाइसेंस हेतु आवेदन स्वीकार कर लिया जाता है तो, आविष्कार पर कार्य करने के लिए पूंजी व्यय करने का जोखिम उठाने की आवेदक की क्षमता, क्या आवेदक ने उचित शर्तों एवं दशाओं के तहत् पेटेंट धारक से लाइसेंस प्राप्त करने के प्रयास किए, राष्ट्रीय आपातकाल या अन्य अत्यंत आपात परिस्थितियां, लोक गैर-वाणिज्यिक उपयोग पेटेंट धारक द्वारा अपनाई गई गैर-प्रतिस्पर्द्धात्मक क्रियाओं की स्थापना।
कंट्रोलर ऑफ पेटेंट द्वारा अनिवार्य लाइसेंस प्रदान करने के किसी मनमाने एवं अवैध आदेश के विरुद्ध आगामी न्यायिक साधन उपलब्ध हैं।
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